IWD लैंगिक समानता का संतुलन: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भारत में पुरुषों के अधिकारों पर चर्चा

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भारत में नारीवाद की जड़ें औपनिवेशिक काल के सुधारों और स्वतंत्रता-पश्चात् सक्रियता में हैं, जिन्होंने सती प्रथा, बाल विवाह, और लैंगिक भेदभाव जैसे मुद्दों को चुनौती दी। आधुनिक नारीवाद दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, और कार्यस्थल असमानता से जूझ रहा है। प्रमुख कानून जैसे घरेलू हिंसा अधिनियम (2005) और तीन तलाक़ का अपराधीकरण (2019) इस प्रगति…

IWD (International Women’s Day Special) भारत में नारीवाद का उदय: एक आवश्यक आंदोलन

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने और लैंगिक समानता को गति देने का एक वैश्विक आह्वान है। भारत में यह दिन महिला शिक्षा, कार्यस्थल भागीदारी, और कानूनी सुरक्षा में प्रगति को रेखांकित करता है। हालाँकि, एक बढ़ती हुई चर्चा यह सुझाती है कि लैंगिक समानता की दौड़ ने अनजाने में पुरुषों के अधिकारों को पृष्ठभूमि में धकेल दिया है, जिससे एक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हुई है। यह लेख इस जटिल बहस को समझने का प्रयास करता है और दर्शाता है कि कैसे भारत का सामाजिक एवं कानूनी ढाँचा पुरुषों की समस्याओं को कमजोर कर सकता है, भले ही फेमिनिज़म (नारीवाद) ने महिलाओं को सशक्त किया हो।

लेकिन नारीवाद की सफलता ने समानता के संदर्भ में नए सवाल खड़े किए हैं। आलोचकों का मानना है कि महिलाओं को सशक्त बनाना ज़रूरी है, लेकिन कुछ नीतियों और सामाजिक परिवर्तनों ने अनजाने में पुरुषों की संवेदनशीलताओं को नज़रअंदाज़ किया है।


IWD : पुरुष अधिकारों के ह्रास की धारणा

कानूनी पक्षपात और कानूनों का दुरुपयोग

भारत के कानूनी ढाँचे को लिंग-विशिष्ट कानूनों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है, जो कुछ के अनुसार पुरुषों को प्रभावित करते हैं:

  1. आईपीसी की धारा 498ए: दहेज उत्पीड़न के खिलाफ यह कानून कुछ मामलों में पति और उसके परिवार के खिलाफ झूठे केस दर्ज करने के लिए दुरुपयोग किया गया है। सुप्रीम कोर्ट (2017) ने इसके दुरुपयोग को “कानूनी आतंकवाद” बताते हुए गिरफ्तारी के लिए दिशानिर्देश जारी किए।
  2. घरेलू हिंसा अधिनियम (2005): यह केवल महिलाओं को सुरक्षा देता है, जबकि पुरुष पीड़ितों को अनदेखा करता है। एनसीआरबी (2019) के अनुसार, 2% घरेलू हिंसा के मामलों में पुरुष पीड़ित होते हैं।
  3. बाल अभिरक्षा विवाद: अदालतें अक्सर माताओं को “टेंडर ईयर्स डॉक्ट्रिन” के तहत प्राथमिकता देती हैं, जिससे पिताओं के अधिकार कमज़ोर होते हैं।

IWD : सामाजिक दबाव और मानसिक स्वास्थ्य

  • आत्महत्या दर: एनसीआरबी (2021) के अनुसार, 72% आत्महत्या पीड़ित पुरुष हैं, जिनमें आर्थिक तनाव, सामाजिक अपेक्षाएँ, या कानूनी लड़ाइयाँ प्रमुख कारण हैं।
  • शिक्षा और रोजगार: लड़कों के स्कूल छोड़ने की दर (15.6%) लड़कियों (13.3%) से अधिक है (यूडीआईएसई+, 2021-22), लेकिन नीतियाँ महिला नामांकन पर केंद्रित हैं। निर्माण और खनन जैसे पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में 90% कार्यस्थल मौतें होती हैं (लेबर ब्यूरो, 2020), लेकिन सुरक्षा पर चर्चा लैंगिक आधार पर ही होती है।

IWD :सांस्कृतिक रूढ़िवादिता


पारंपरिक “मर्दानगी” की छवि पुरुषों को भावनाएँ दबाने और केवल “कमाऊ” बनने के लिए दबाव डालती है। एनआईएमएचएएनएस (2016) के अनुसार, पुरुष महिलाओं की तुलना में मानसिक सहायता लेने में 50% कम सक्रिय हैं।


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कानूनी ढाँचा और आलोचनाएँ

धारा 498ए जैसे कानून महिलाओं की रक्षा के लिए बने हैं, लेकिन इनके अनुप्रयोग ने चिंताएँ बढ़ाई हैं। 2019 में, 7% मामले झूठे पाए गए, लेकिन कानूनी प्रक्रिया निर्दोष परिवारों को प्रभावित करती है। इसके विपरीत, भारत में पुरुष पीड़ितों या झूठे आरोपों से निपटने के लिए कोई विशेष कानून नहीं हैं।


सामाजिक अपेक्षाएँ और मानसिक स्वास्थ्य

पुरुषों पर आर्थिक सफलता का दबाव अक्सर विवाह में देरी या बेरोजगारी के कारण समाज से बहिष्कार का कारण बनता है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2016) के अनुसार, 9.8% पुरुष अवसाद से पीड़ित हैं, लेकिन सांस्कृतिक कलंक सहायता लेने में बाधा है।


IWD संतुलन की आवश्यकता: समावेशी लैंगिक समानता


लैंगिक समानता को सभी असमानताओं को संबोधित करना चाहिए। संभावित पहलों में शामिल हो सकते हैं:

  1. लिंग-तटस्थ कानून: घरेलू हिंसा और अभिरक्षा कानूनों में पुरुष पीड़ितों को मान्यता।
  2. मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता: “विषैली मर्दानगी” को चुनौती देने वाले अभियान।
  3. शैक्षिक सुधार: लड़कों के ड्रॉपआउट दर को कम करने के लिए छात्रवृत्ति और मार्गदर्शन।
  4. कार्यस्थल सुरक्षा: पुरुष-प्रधान उद्योगों में सुरक्षा मानकों का विस्तार।

सेव फैमिली फाउंडेशन और मेंस राइट्स इंडिया जैसे संगठन इन परिवर्तनों की वकालत करते हैं, जो प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग पर ज़ोर देते हैं।


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निष्कर्ष


महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने में नारीवाद की भूमिका निर्विवाद है, लेकिन समावेशिता के लिए पुरुषों की चुनौतियों को स्वीकार करना आवश्यक है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, समानता को सभी लिंगों के उत्थान के रूप में परिभाषित करना एक न्यायसंगत समाज की ओर कदम है। भारत का यह सफर संवाद, सहानुभूति, और व्यवस्थागत सुधार माँगता है।


IWD : FAQs

  1. क्या नारीवाद पुरुष अधिकारों के खिलाफ है?
    नहीं। नारीवाद लैंगिक समानता चाहता है, लेकिन कुछ नीतियाँ पुरुषों की समस्याओं को अनदेखा कर सकती हैं। वास्तविक समानता के लिए सभी लिंगों की चुनौतियों को समझना ज़रूरी है।
  2. भारत में पुरुषों के खिलाफ पक्षपाती कानून कौन से हैं?
    धारा 498ए (दहेज कानून) और घरेलू हिंसा अधिनियम को लिंग-विशिष्ट होने के लिए आलोचना मिली है, हालाँकि इनका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा है।
  3. सामाजिक दबाव भारतीय पुरुषों को कैसे प्रभावित करता है?
    पुरुषों पर “कमाऊ” बनने का दबाव तनाव, मानसिक समस्याएँ, और उच्च आत्महत्या दर का कारण बनता है। सांस्कृतिक कलंक सहायता लेने में रुकावट है।
  4. क्या भारत में पुरुष अधिकारों के लिए संगठन काम करते हैं?
    हाँ। सेव फैमिली फाउंडेशन और मेंस राइट्स इंडिया जैसे समूह कानूनी सुधार और मानसिक स्वास्थ्य सहायता की वकालत करते हैं।
  5. क्या नारीवाद और पुरुष अधिकार साथ-साथ चल सकते हैं?
    बिल्कुल। दोनों आंदोलनों का लक्ष्य न्याय है। सहयोगात्मक प्रयास महिलाओं की प्रगति को कम किए बिना व्यवस्थागत कमियों को दूर कर सकते हैं।

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